Introduction
अगर हम लोग अपने देश भारत कि बात कर तो सबसे महंगा शेयर में नाम आता हैं MRF का जिसका शेयर प्राइस इस समय है लगभग 86000 हजार के आस पास जो किसी भी नए इन्वेस्टर के लिए बहुत ज्यादा महंगा हैं और वही Tata, Wipro और कंपनी का शेयर हैं
लगभग 500 सौ से 1000 के आस पास जोकि फिर भी लोग खरीद सकते हैं तो इसका मतलब ये हुआ कि MRF ज्यादा अच्छा शेयर हैं और बाकी कंपनी के शेयर खराब तो ऐसा नहीं हैं हम लोग किसी कंपनी के शेयर प्राइस से निर्णय नहीं ले सकते हैं Share split | share split क्या होता हैं
क्योंकि अलग – अलग कंपनी का बिज़नस मॉडल अलग – अलग होता हैं तब ऐसा क्यों है कि ये कंपनी इतना अच्छा हैं तो इनका शेयर प्राइस मे भिन्नता इतना क्यों हैं इन दोनों शेयर में एक भिन्नता जरूरी क्योंकि MRF जो कंपनी हैं ये अपने शेयर को कभी भी Share split नहीं किया हैं

और TATA motors और Wipro जैसे कंपनी ने अपने शेयर को कई पर split किया हैं और यही वजह हैं कि इन दोनों या इन सभी कंपनी के शेयर प्राइस में बहुत ज्यादा भिन्नता हैं और आज हम लोग समझने वाले हैं
शेयर स्पिलट के बारे में और आखिर What is Share Split होता क्या हैं और इनसे कंपनी और शेयर होल्डर को क्या फायदा होता हैं और कंपनी आखिर शेयर को स्पिलट करती क्यों हैं
What is Share Split?
जैसे हमारे पास एक गोला कर एक केक हैं और उसे हम लोग उसे चार भागो में काटा और बाद में हम लोग उस कटे हुए केक को एक पीस को फिर से एक एक पीस में काटा यानि कि फिर उसी एक केक को आठ भागो में काटा लेकिन जो केक हैं
वह तो आपका एक ही रहेगा और इस चीज को कंपनी से रिलेट करके देखते हैं यानि कि जब भी कंपनी अपने शेयर को स्पिलट करने के बारे में सोचती हैं तो वह एक शेयर को वह कई सारे शेयर में बाँट देती हैं जैसे एक कंपनी हैं जैसे कंपनी हैं ABC Pvt Ltd जिसने अपने शेयर होल्डर से कहा कि वह अपने शेयर को 1:5 में अपने शेयर को बाँटेगा
यानि कि तब इसका मतलब होगा कि हर एक शेयर का पाँच SPLIT होगा यानि कि यहाँ पर किसी शेयर होल्डर के पास अगर 100 शेयर होगा तो और Share split होने के बाद हो जाएगा 500 शेयर लेकिन यहाँ पर नबर ऑफ शेयर तो बढ़ गए लेकिन आपका टोटल ऑफ कैपिटल उतना ही रहने वाला हैं
Calculation of Share Split
तो Share split में शेयर होल्डर के खरीदे हुए शेयर को कई भागों में बाँट दिया जाता हैं और ये रैशियो के द्वारा होता हैं
जैसे कोई ABC Limited कंपनी 1:5 का share Split और हमारे पास उस कंपनी के 100 शेयर हैं 200 रुपये के हिसाब से और हमारा total इन्वेस्ट मेंट हैं 20000 हजार रुपया और अब हमारा 1:5 के हिसाब से हमारा शेयर हर एक शेयर पाँच शेयर में Share split हो जाएगा
अब हमारे पास total शेयर होगे 500 सौ लेकिन अब यहाँ पर आपका प्राइस में चंजेस देखने को मिलेगा और जब भी कोई कंपनी शेयर को Share split करती हैं तो उसके शेयर प्राइस उतने ही रैशियो से divided हो जाते हैं
जैसे यहाँ पर एक शेयर पाँच शेयर में divided किया गया और वैसे ही इसकी शेयर 1:5 में डिवाइडेड हो जाएगा और हो जाएगा 40 रुपया लेकिन आपका टोटल इनवेस्टमेंट वही रहेगा 20000 हजार रुपया और और आप में से बहुत से लोग ये सोच रहे होगे की ये तो बोनस के टाइम पर भी होता हैं वह पर शेयर स्पिलट न हो कर कंपनी हमें शेयर को फ्री में दे देती हैं
लेकिन यहाँ पर एक भिन्नता ये आता हैं की जो कंपनी फ्री शेयर देती है वह अपने पैसे को रिजर्व फ़ंड से उठती हैं और अगर आप क्या होते है Bonus shares तो इस लिंक पर क्लिक कर के समझ सकते हैं
लेकिन share split में रिजर्व फ़ंड से पैसे न दे कर अपने फ़ेस वैल्यू को 1:5 के रैशियो में बाँट देता हैं और इस कंपनी के शेयर पर कोई फर्क नहीं पड़ता हैं तो XYZ कंपनी के shareholders’ Equity था 50 करोड़ रुपया जिसमें share Capital था Rupee 10 x 2 Crore रुपये और आपका रिजर्व था 30 करोड़ और आपका 10 रुपया हैं ये आपका फ़ेस वैल्यू हैं शेयर के Share split हो जाने के बाद 1:5 में उसके बाद आपका share कैपिटल भी 1:5 रैशियो में हो जाएगा
Effect of Stock Split
जैसे की हमने इसका calculation में पहले समझा कि अगर कंपनी के पास अगर share होल्डर पहले से हैं हमारा नंबर ऑफ स्टॉक, स्टॉक स्पिलट के हिसाब से बढ़ जाएगा और इसी से उस स्टॉक कि EPS Earning Per Share पर भी इफैक्ट आता हैं
क्योंकि वह भी इस रैशियो से भी गिर जाएगा जिस रैशियो से आपका share price गिरा हैं और अगर हम लोग कंपनी के हिसाब से भी देखे टोटल share कैपिटल पर कोई फर्क नहीं आया शेयर स्पिलट के बाद जब कोई फर्क नहीं पड़ रहा हैं तो क्या कंपनी ये सब जबर दस्ती करती हैं
Why do Companies Split Stock
सबसे पहले हैं शेयर प्राइस कि affordability कंपनी ऐसा तब करती हैं जब उन्हे लगता हैं कि शेयर प्राइस बहुत ज्यादा बड़ गए हैं जिसे रिटेल इन्वेस्टर इस खरीद नहीं सकते हैं जैसे कोई कंपनी XYZ एक IT कंपनी हैं और उसका शेयर प्राइस हैं 2000 हजार रुपया और वही इसके competitor का share प्राइस 100 से 500 के बीच में हैं
ऐसे में आपका XYZ कंपनी का शेयर बहुत महंगा हुआ तो इसको कम करने के लिए Share split एक बहुत अच्छा साधन होता हैं कस्टमर को अपने कंपनी में इन्वेस्ट करने लिए आकर्षित करने का जैसा कि हम लोग पहले देखा था कि ABC कंपनी कि share प्राइस था 100 रुपया और वही Share split के बाद हो गया 40 रुपया दूसरा रीज़न हो सकता हैं
आपका लिकुइडिटी मार्केट में एक अच्छे कंपनी के शेयर प्राइस इतना ज्यादा प्राइस से नीचे गिरे गे तो उसे लोग लो प्राइस में खरीदना चाहे गे ही जिसे share का मांग मार्केट में बढ़ जाएगा और स्टॉक स्पिलट से कंपनी का कस्टमर बेस भी डाइबर भी हो जाता हैं और अब abc कंपनी के share को एक रिटेलर एक किसान एक मिडिल क्लास के लोग भी खरीद रहे होते हैं
क्योंकि मार्केट में करेंट संटीमेंट कि बहुत ज्यादा important होता और अगर सटीमेंट स्पिलट के टाइम ठीक रहे तो दोनों हीं पॉइंट सही साबित होगा और other वाइस गलत भी हो सकते हैं तो अब सवाल उठता हैं कि क्या जो इन्वेस्टर अपना पैसा उस कंपनी में पहले से लगाए हैं
तो उनके portfolio पर भी कोई असर पड़ता हैं तो इसका उतार हैं ऐसे तो उनके portfolio पर कोई खास असर नहीं पड़ता हैं क्योंकि उनका टोटल इनवेस्टमेंट कैपटल तो वही रहने वाला हैं बस नंबर ऑफ share बढ़ जाता हैं
How Dose Stock Split Affect Existing Shareeholders
जैसे के हमने पहले ही समझा था कि EPS भी कम हो जाता हैं वह इस लिए क्योंकि जब नंबर ऑफ share बढ़ेगा तो हर एक share का प्रॉफ़िट कम हो जाएगा और इस सब के अलाव कई बार कंपनी ऐसे भी होती हैं कि स्टॉक split के इतने भी फायदे होने के बाद भी कंपनी अपने share को स्पिलट नहीं करती हैं और वह ऐसे क्यों नहीं करती हैं चलिए समझते हैं
सबसे पहला रीज़न हैं कि कई कंपनी ऐसा सोचती हैं कि जब कंपनी में सब कुछ ठीक चल रहा हैं तो share को स्पिलट करने कि जरूरत क्यों हैं जैसे अगर हम लोग MRF का 2010 में share प्राइस देखे तो वह था आपका 8700 रुपया और अब 2023 में देखे तो 93004 के आस पास और ना तो
इसे रिटेल इन्वेस्टर 2010 में खरीद सकते थे और ना ही इसे 2023 में खरीद सकते हैं फिर भी 2010 से उनके इन्वेस्टर को 800 % का रिटर्न मिला हैं और वह भी बिना कोई share को स्पिलट किए बिना इसका मतलब हैं अगर कंपनी में ग्रोथ करने कि क्षमता हैं तो वह ग्रो तो करेगा ही और उसे स्टॉक स्पिलट करने कि जरूरत पड़ेगी ही नहीं
Concentrated Shareholdings
अब जब share प्राइस हाइ प्राइस पर थी तब तक उसे ज्यादा लोग बाइ नहीं कर सकते थे और ऐसा होने से वह share बहुत कम लोगो में डिवाइडेड हो सकता हैं और इस कंपनी के founder promoter के पास ज्यादा share होलडिंग होती हैं
और इस कंपनी के कोई भी निर्णय कम लोग ही ले पते हैं और सही निर्णय ले पते हैं दूसरा रीज़न ये भी हैं एक रीज़न हैं Day Trading से बचाने के लिए और रोज – रोज के समस्या से भी जब किसी कंपनी का प्राइस कम होता हैं
तो हर कोई चाहे वह रिटेलर हो या चाहे स्माल इन्वेस्टर उसमें वैट करने लगती हैं और day ट्रेडिंग के वजह से कई बार कंपनी concentrated हो जाती हैं और वही शेयर प्राइस खरीदा न जा सके तो उसमें ज्यादा वैल्यू में ट्रेडिंग लोग कर नहीं सकते हैं
और ना ही कोई Concentrated होगा जैसे अगर आप अपने demat अकाउंट में MRF के Buyer और seller को देखेगे तो वह आपको बहुत कम ही मिलेगे
Conclusion
अब हम लोग तो Share split को तो समझ लिए और ये भी देख लिए कि कंपनी आखिर निर्णय किन लेती हैं और नहीं लेती तो उसके भी क्या – क्या रीज़न हैं और अगर अच्छे से देखा जाए तो ये सही भी हैं और गलत भी हैं और आज के समय ये कंपनी का निर्णय होता हैं कि उनको अपने share को स्पिलट करके अपने share के प्राइस को कम करना चाहे कि नहीं और आप अगर ये सब के बारे में नहीं समझा हैं तो आप इनको भी पढ़ कर समझ सकते हैं
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